उड़द के लिए उर्वरक की उपयुक्त मात्रा इस प्रकार से है।
- उड़द के लिए हल्की एवं मध्यम भूमि उपयुक्त होती है।
- मुख्यत: वर्षा आधारित फसल है।
- अम्लीय एवं क्षारीय भूमि उड़द के लिए उपयुक्त नहीं है।
- भूमि की तैयारी मानसून की पहली वर्षा के बाद गहरी जुताई करके एवं नींदाओं को नघ्ट करके करना चाहिए।
- बुआई मानसून आने के बाद जूलाई के दूसरे सप्ताह तक कर लेना चाहिए।
- कम वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए भी ये फसल उपयुक्त है।
- बीज उपचार 3 ग्राम थाईरम और 1 ग्राम कार्बंडाजिम प्रति कि.ग्रा. बीज दर से करना चाहिए।
- बीज शोधन 10 ग्राम राईजोबियम प्रति कि.ग्रा. बीज दर से करना चाहिए।
- बीज दर 20 कि.ग्रा. प्रति हे. रखना चाहिए।
- कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. रखनी चाहिए।
- पौधे से पौधे की दूरी 10 से.मी. रखना चाहिए।
- 20 कि.गा.नत्रजन एवं 50 कि.ग्रा. फास्फोरस बेसल मात्रा के रूप में अनुमोदित है।
- पोटॉश मिट्टी परीक्षण मान के आधार पर देना चाहिए।
- सिंगल सुपर फास्फेट एवं अमोनियम सल्फेट का उपयोग सल्फर की कमी वाली मिट्टी में करें।
- यदि मौसम सूखा हो तो पहली सिंचाई फूल आने पर दें।
- बोनी के 20-25 दिन बाद नींदा उखाड़ कर फेंके।
- बोनी के 40-45 दिन बाद दोबारा नींदा उखाड़ कर फेंके।
- पीला मोजेक वायरस रोग में प्रतिरोधक / सहनशील किस्में उगाए।
- फसल में फुदका/माहू/ सफेद मक्खी आदि कीटों का प्रकोप हो तो मिथाईल डिमाटोन 25 ई.सी. , 1.5 लीटर/हे. की दर से 600-800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
- फसल की निम्नलिखित क्रान्तिक अवस्थाओं में नमी, पोषण,गर्मी, धूप और खरपतवार आदि के दबाव से बचाना चाहिए।
- अकुंरण, कली आने के पहले, फूले आने पर, फल्ली बनने और फल्ली पकने पर।
उर्वरक प्रबंधन
- अच्छी उपज के लिए करीब 20-30 कि.ग्रा. नत्रजन, 50-60 कि.ग्रा. फास्फोरस एवं 30-40 कि.ग्रा. पोटॉश प्रति हेक्टेयर के दर से उपयोग करें।
- उर्वरकों की पूरी मात्रायें बोनी के पूर्व दे।
सिंचाई प्रबंधन
- इस फसल को सामान्यत: सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
- एक सिंचाई उपलब्ध होने पर फूल आने पर सिंचाई करें।